Wednesday, 14 September 2011

मैं खुद से बातें करता हूँ

मैं खुद से बातें करता हूँ

कितने दिन के बाद मिला हूँ
मैं खुद से बातें करता हूँ

तेरा हाल मुझे मालुम है
तू बतला, अब मैँ कैसा हूँ

मैं तन्हा घर से निकला था
रात ढले तन्हा लौटा हूँ

टूट गया आईना दिल का
अब घर में तन्हा रहता हूँ

फटी जेब है होश हमारा
सिक्का हूँ खुद खो जाता हूँ

कब्र बदन की और तन्हाई
मैं बच्चे सा सो जाता हूँ

ख्वाब़ हैं या बस दीवारें हैं
क्या शब भर देखा करता हूँ

बिना पते के ख़त जैसा मैं
क्यूँ दर-दर भटका करता हूँ

मेला-झूला-जादू, दुनिया
बच्चा हूँ मैं, खो जाता हूँ

दर्द है या दीवानापन है
हँसते-हँसते रो पड़ता हूँ

दिल के भीतर सर्द अँधेरा
मैं तुझको ढूँढा करता हुँ

भूल गया बाजार मे मुझको
मैं तेरे घर का रस्ता हूँ

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